शिबू सोरेन नही।बल्कि ये थे JMM के पहले अध्यक्ष।कैसे पड़ा JMM नाम

शिबू सोरेन नही।बल्कि ये थे JMM के पहले अध्यक्ष।कैसे पड़ा JMM नाम
4 FEB 1972 इस वक़्त तक बिहार के क्षेत्र में (जो अब झारखण्ड हैं) मजदूरों,आदिवासी,धन कटनी आंदोलन तेज हो चुका था।जहाँ एक ओर शिबू सोरेन संथालों को साहूकारों से मुक्ति दिलाने के लिए आंदोलन कर रहे थे वही दूसरी ओर मजदूरों को न्याय दिलाने और उनके शोषण को रोकने के लिए विनोद बिनोद बिहारी महतो और ए.के राय आंदोलन कर रहे थे।
4 फरवरी, 1972 को धनबाद में विनोद बाबू के धनबाद स्थित आवास पर एक बैठक हुई, जिसमें शिबू सोरेन, विनोद बाबू, ए.के. राय, प्रेम प्रकाश हेंब्रम, कतरास के पूर्व राजा पूर्णेदु नारायण सिंह, शिवा महतो, जादू महतो, शक्तिनाथ महतो, राज किशोर महतो, गोविंद महतो आदि मौजूद थे। उस बैठक में सोनोत संथाल समाज और शिवाजी समाज का विलय कर नया संगठन बनाने का फैसला लिया गया। बैठक में नए संगठन के नाम पर चर्चा हुई। कई नाम सुझाए गए।
कुछ माह पहले ही बँगलादेश का निर्माण हुआ था और इसके लिए मुक्ति वाहिनी ने लंबा संघर्ष किया था।
उधर विएतनाम में भी संघर्ष चल रहा था। दोनों जगहों के संघर्ष से जोड़कर नए संगठन का नाम
‘झारखंड मुक्ति मोरचा’
रखने का फैसला किया गया। उसी समय झारखंड मुक्ति मोरचा की केंद्रीय समिति का गठन किया गया। सभी की सहमति से विनोद बिहारी महतो को अध्यक्ष और शिबू सोरेन को महासचिव बनाया गया। पूर्णेदु नारायण सिंह को उपाध्यक्ष, टेकलाल महतो (तोपचाँची) को सचिव और चूड़ामणि महतो को कोषाध्यक्ष चुना गया। शंकर किशोर महतो को कार्यालय सचिव बनाया गया।
पार्टी गठन के बाद 1973 में मना पहला स्थापन दिवस।